How Winston Churchill’s policy killed 30 Lac Indians in 1943 Bengal Famine.
कैसे विंस्टन चर्चिल की नीतियों ने 1943 के बंगाल अकाल में 30 लाख भारतियों की जान ली।
1943 का बंगाल अकाल सूखे के कारण नहीं हुआ था । 1943 Bengal Famine was man made.
आधुनिक भारतीय इतिहास में 1943 का बंगाल अकाल के बारे मे ज्यादा चर्चा नहीं होती। हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इसे दबा दिया और 30 लाख से ज्यादा हुई बंगालियों की मौत को गुमनाम कर दिया। कदाचित यह भारत का एकमात्र ऐसा अकाल था जो गंभीर सूखे के परिणामस्वरूप नहीं हुआ था, जबकि कृत्र्म तरीके से पैदा किया गया था। इसका जेम्मेदार सिर्फ विंस्टन चर्चिल था। कई बुद्धिजीवी तो चर्चिल की तुलना हिटलर से करते हैं।
[pullquote align=”right”]विन्सटन चर्चिल(30 नवंबर, 1874-24 जनवरी, 1965) अंग्रेज राजनीतिज्ञ। द्वितीय विश्वयुद्ध, 1940-1945 के समय इंगलैंड के प्रधानमंत्री थे। [/pullquote]विदेशी अखबारों ने 1943 के बंगाल अकाल को दुनिया तक पहुँचाया ।
अकाल के दौरान ज़्यादातर मृत्यु सूखे और पैदावार न होने के कारण होती हैं। परंतु 1943 का बंगाल अकाल ऐसा नहीं थे। सम्पूर्ण पूर्वी भारतीय क्षेत्र 1940 मे अधिकांश समय सूखे से प्रभावित रहा। 1941 में ही जब स्थिति खराब हो रही थी, तो कई भारतीय और वेदिशी अखबारों ने कोलकाता (कलकत्ता) की सड़कों पर अकाल से मरने वालों की फोटो छापी, जिससे बाकी दुनिया को वहाँ की भयावा स्थिति का पता चला। हालांकि अपनी छवि बचाए रखने के लिए बरतानी सरकार ने बहुत प्रयास किया की ये समाचार दुनिया को न पता चल सके।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के प्रमुख शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर विमल मिश्रा ने इस अकाल को लेकर कहा है की “यह एक विचित्र प्रकार का अकाल था, जो कि मानसून कि कमी के कारण न होकर, ब्रिटिश सरकार कि नीतिगत विफलता के कारण हुआ था।”
कैसे 1943 में बंगाल में अकाल जैसी परिस्थितियों का निर्माण हुआ ! How 1943 Bengal Famine was made up.
शोधकर्ताओं के एक धडे का मानना है कि 1943 से पूर्व ही बंगाल मे अनाज कि उपलब्धता घटाई गई थी। इसका कारण मुख्य रूप से बर्मा (अब म्यांमार) मे होने वाली प्राकृतिक आपदाओं, फसलों में संक्रमण, कीटाणुओं के प्रकोप को माना जाता रहा है। बर्मा के पतन के बाद बंगाल की खाद्य आपूर्ति वैसे भी कम हो गई थी।
1943 बंगाल अकाल पर नोबेल पुरूस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने क्या कहा।
लेकिन इसके विपरीत नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री श्री अमर्त्य सेन का कहना है कि उस समय बर्मा कि समस्या के बावजूद भी बंगाल क्षेत्र मे खाद्यान कि पर्याप्त आपूर्ति थी, और इस भुखमरी का मुख्य कारण द्वितीय विश्वयुद्ध से होने वाली मुद्रास्फीति और जमाखोरी था, जिससे अनाज और अनाज कि कीमत गरीब बंगालियों की पहुंच से दूर हो गई थी।

प्रसिद्ध लेखिका मधुश्री मुखर्जी ने भी 1943 के बंगाल अकाल पर अपनी प्रतिक्रिया दी है ।
प्रसिद्ध लिखिका और संपादक मधुश्री मुखर्जी और कई शोधकर्ताओं ने हाल के अध्ययनों द्वारा यह तर्क दिया है कि इस भुखमरी का मुख्य कारण लंदन में बैठे विंस्टन चर्चिल द्वारा लिए गए कैबिनेट के फैसलों थे।
श्रीमती मुखर्जी ने कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये हैं जिससे ज्ञात होता है कि चर्चिल की कैबिनेट को बार-बार चेतावनी दी गई थी कि युद्ध की खाद्य आपूर्ति के लिए भारतीय संसाधनों का संपूर्ण उपयोग करने से अकाल पड़ सकता है, लेकिन इससे उलट बरतानी सरकार ने बंगाल का खाद्यान निर्यात करने को ही उचित समझा।
ये भी पढ़ेंचर्चिल ने कहा ” भारतीय, खरगोशों की तरह अपनी आबादी बढ़ाते हैं “
चर्चिल ने भारतीय खाद्यान आपूर्ति को लेकर बहुत ही आपति जनक रूप मे कहा था कि भारतीय लोग “खरगोशों की तरह प्रजनन करते हैं”, इसलिए वे खुद ही इसके जिम्मेदार हैं। आगे उपहास करते हुये विंस्टन चर्चिल ने यह भी कहा कि “यदि भारत मे अन्न कि इतनी कमी है तो महात्मा गांधी अभी तक कैसे जीवित हैं? “
हिन्दू मंदिरों ने हमेशा अकाल में जनता की सेवा की है ।
यह भी जानने योग्य है कि इतिहास मे किसी भी अकाल के दौरान भारतीय मंदिरों ने हमेशा पीड़ितों को राहत दिया था, और आपात काल मे सदैव धन और खाद्यान कि आपूर्ति की है। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने हिन्दू मंदिरो कि आलोचना भी की थी और प्रयास किया कि मंदिरों का नियंत्रण सरकार के हाथों मे आ जाए।आज भी स्वतंत्र भारत मे कई प्रमुख मंदिरों का नियंत्रण अभी भी सरकार के हाथों मे है।
बीबीसी की पत्रकार श्रीमती योगिता लिमाए ने भी अपने एक लेख मे चर्चिल को 1943 के बंगाल अकाल का जिम्मेदार ठहराया है । पढने के लिए क्लिक करें क्लिक करें
ब्लॉग लेखक: पी0 कौशल