सिंगरौली की दिशा व दशा क्यों है सिंगरौली सदा से उपेक्षित? 

मध्य प्रदेश में स्थित सिंगरौली,भारत के ऊर्जा उद्योग में  लगभग 35,000 मेगावाट बिजली का योगदान देता है।देश की उर्जाधानी कहे जाने वाला सिंगरौली अपने प्रारंभ काल से ही अभिशप्त और श्रापित रहा है क्योंकि अतीत में भी इसको काला पानी ही कहा जाता था और लोगों को यहां काले पानी की सजा के लिए भेजा जाता था। और वर्तमान में भी यहां रहने वाले लोग काला पानी की ही सजा एक तरह से भुगत रहे हैं। आज भी उनका यहां रहना नर्क में रहने से कम नहीं है।सिंगरौली की दिशा व दशा आज भी विचारणीय है। 

सिंगरौली में पर्यावरण की स्थिति।

सिंगरौली में पर्यावरण का जो वर्तमान दृश्य है वह भारत में प्रदूषण के अपने चरम पर पहुंचने वाले स्थानों में सर्वोपरि है और यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि जब इस सिंगरौली जिले की स्थापना की गई थी तब यहां के निवासियों को यह नारा दिया गया था कि  सिंगरौली को सिंगापुर बनाया जाएगा, सिंगरौली को स्विट्जरलैंड जैसा बनाया जाएगा, यहां की सड़कें अमेरिका से भी सुंदर होगी सिंगरौली को स्थाई विकास का एक ऐसा स्थान प्रदान किया जाएगा कि बाहर से आने वाले लोग देख कर के इसका उदाहरण और नजीर और जगह के लोगों को देंगे। परंतु अफसोस और दुर्भाग्यपूर्ण पल है कि ठीक इसके विपरीत स्थिति और परिस्थिति होने के कारण लिखना पड़ रहा है कि आज सिंगरौली हर क्षेत्र में अपनी दुर्दशा पर रो रहा है।

सिंगरौली में औध्योगिक प्रदुषण।

सिंगरौली में यहां की जनता को प्रतिदिन उपहार के रूप में सिर्फ और सिर्फ उच्च कोटि की ब्लास्टिंग, उच्च कोटि के कोयले की राख और धुएं उच्च कोटि के टूटे हुए सड़कों की धूल कोयला का धुआँ और बड़ी-बड़ी कंपनियों के विशाल चिमनियों से निकलने वाले धुएं और राख की अनवरत बरसात तोहफे के रुप में प्रतिदिन मिल रहा है और आने वाले दिनों में इसके बढ़ने के ही आसार नजर आ रहे हैं ।सिंगरौली की दिशा व दशा – An Insight of Singrauli. इसके समाधान की कोई राह नहीं दिख रही है कहने को तो यहां बड़े-बड़े कुछ सर्वोच्च कोटि स्तर के प्रतिष्ठान हैं लेकिन जनता की भलाई के लिए उनके दिल के दरवाजे हमेशा ही बंद नजर आते हैं।

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सिंगरौली की सड़कें,दैनीय स्थिति में!

सबसे पहले यदि  हम सड़कों की ही बात करते हैं तो शुरू से लेकर आज तक सिंगरौली को चलने नायक सड़के तक नसीब नहीं  हुई हैं और इसके लिए सिंगरौली में सभी पार्टियां सभी कारपोरेट जगत और जिला प्रशासन के सभी जिम्मेदार अधिकारी भी शामिल हैं, क्योंकि ना तो राज्य स्तर पर ना तो कारपोरेट स्तर पर और ना ही जिला प्रशासन के स्तर पर कोई संतोषजनक प्रयास किया गया है। 30 साल का इतिहास अगर देखा जाए तो सिर्फ खानापूर्ति और औपचारिकताएं ही उपलब्धि के नाम पर नसीब होती रही हैं। कितने लोगों ने इस खराब और जर्जर सड़क के कारण अपने जीवन को खोया है। कहा गया था और वादा किया गया था कि कोयला  ट्रांसपोर्ट के लिए अलग रोड होगी और लोगों को आने जाने के लिए अलग रोड होगी, परंतु यह सिर्फ अखबारों और फाइलों में ही वादा बनकर रह गया हकीकत के धरातल पर कभी भी नहीं उतर पाया।

सिंगरौली में स्वास्थ्य सेवा की परिस्थिति।

अगर बात स्वास्थ्य की जाए तो स्वास्थ्य सेवाएं भी अपने मानक स्तर से बहुत ही नीचे बनी हुई हैं आज तक यहां पर कोई एक उच्च कोटि का हॉस्पिटल तक नहीं बन पाया एक-दो हॉस्पिटल जो  बने भी  वह भी अच्छी अच्छी सेवाएं नहीं दे पाए और केवल कुछ तथाकथित नेताओं और अधिकारियों के आपस में अहंकार के शिकार होकर के केवल शोपीस बन करके ही रह गए हैं वहां पर न तो सही से इलाज हो पा रहा है और न ही जिस उद्देश्य से हॉस्पिटल बनाए गए थे उनके उद्देश्य की पूर्ति ही हो पा रही है।

सिंगरौली में शिक्षा संस्थानों की हालत।

शिक्षा का भी अगर जिक्र किया जाए तो कमोबेश वही हाल है आज तक ना तो कोई  मेडिकल कॉलेज बन पाया न कोई  इंजीनियरिंग कॉलेज बन पाया ना कोई माइनिंग कॉलेज बन पाया ना तो यहाँ  कोई उच्च कोटि की कोई यूनिवर्सिटी ही बन पाई।स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात हर एक अभिवावक को बच्चों को अग्रिम शिक्षा हेतु सिंगरौली से बाहर ही भेजना पड़ता है।  हां कागजों और वादों में यह समय-समय पर जनता के बीच प्रसाद के रूप में बांटे जाते रहते हैं बस समय समय पर  मुंगेरीलाल के हसीन सपने भी दिखाए जाते रहते हैं कि आने वाले दिनों में सिंगरौली सिंगापुर जैसा हो जाएगा।Singrauli Medical college बस आप लोग थोड़ा धैर्य रखिए पर जनता बेचारी क्या करें ना तो यहां के नेता ना तो यहां के जनप्रतिनिधि ना तो यहां के कारपोरेट जगत के आलाअधिकारी, किसी के भी कान पर जूं नहीं रेंग रही है सब आंखों पर पट्टी बांधकर केवल प्रगति की अनवरत धुँवा धार अंधी दौड़ में शामिल हैं।

कितनी बातें लिखी जाए, कितने बार लिखा जाए, किसके लिए लिखा जाए और कब तक लिखा जाए। अब यह सब समझ से परे दिखता है।अब तो सिंगरौली का भविष्य अंधकार में ही दिखता है और अंधकारमय ही दिखता है। आगे निराशा ही निराशा नजर आ रही है।

—-सुरेश गिरी “प्रखर” 

 

 

 

 

 

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