भगवान् वाल्मीकि ने वाल्मीकि रामायण में मंदोदरी विलाप का भावुक वर्णन किया है।
वाल्मीकि रामायण और महाभारत दोनों काव्य हैं। लेकिन दोनो के संबंधित कवि,वेदव्यास और वाल्मीकि,उनके झुकाव और शैली में भिन्नता है।वाल्मीकि जी द्वारा मंदोदरी विलाप में इसका सुंदर उदहारण मिलता है ।
वेदव्यास और वाल्मीकि में भिन्नता।
वेदव्यास तथ्यात्मक थे। कुछ अपवादों को छोड़,उन्होंने ज्यादातर व्यक्तियों और घटनाओं का वर्णन किया है। वाल्मीकि की रचना काव्य है, कालिदास की तरह, उन्होंने प्रकृति का उत्कृष्ट वर्णन किया है ।हालांकि रावण की मृत्यु का वर्णन केवल वाल्मीकि रामायण में वर्णित नहीं है। संस्कृत में,अन्य ग्रन्थ भी हैं जैसे योग-वशिष्ठ,रामायण,अध्यात्म रामायण इत्यादि । परन्तु वाल्मीकि रामायण अनोखी है ।
वाल्मीकि मूल रूप में कवि ही थे । उनके लिखे काव्यों का अनुवाद करना किसी के लिए भी कठिन है। परन्तु मैंने एक छोटा सा प्रयास किया है।वाल्मीकि रामायण के हिंदी अनुवाद का मैंने PDF भी डाली है ताकि आप अधिक रूचि से वाल्मीकि जी के प्रसंगों का अनुभव कर सकें।
मंदोदरी विलाप,जब श्री राम ने रावण का वध कर दिया।
रावण की कई पत्नियां थीं। जिनमे सबसे महत्वपूर्ण थी मंदोदरी।वाल्मीकि रामायण में,श्री राम द्वारा रावण का वध करने के बाद,मंदोदरी के विलाप पर एक पूरा अध्याय समर्पित है। यह सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण में सबसे सुंदर अध्यायों में से एक है।
रावण वध के पश्चात मंदोदरी और अन्य पत्नियों का विलाप।
“ओह! हे राजन्! आपके कोमल और चमकते चेहरे पर उत्कृष्ट भौंह और एक ऊँची नाक है। इसकी सुंदरता और आकर्षण चंद्रमा, कमल या सूर्य की तरह है। आपके चेहरे का रंग तांबे जैसा है। आपके शीष पर उज्ज्वल मुकुट के साथ चमकदार कान के छल्ले हैं । आपकी उत्सुक आँखें मादकता के साथ इधर उधर ताकती थीं। आप कई प्रकार की माला और आभूषण पहने हुए सुंदर सुंदर दीखते थे । आपकी मुस्कान मनमोहक थी और आपकी बातचीत मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी। हे भगवन! हालाँकि, अब आपका चेहरा उतना उज्ज्वल नहीं रह गया है, जितना पहले हुआ करता था। राम के बाणों के कारण, यह रक्तरंजित होकर लाल हो चूका है। आपका भंजित शीष वसा के साथ लिप्त है और रथ द्वारा उड़ाई गई धूल के कारण धूमिल हो गया है।
रावण की मृत्यु के पश्चात वाल्मीकि रामायण में रावन की अन्य पत्नियों के विलाप का वर्णन इस प्रकार है:
“उन्होंने देखा कि अत्यधिक तेजस्वी रावण जमीन पर गिरा हुआ था। वह आकार में विशाल था और वीरता में महान था। उन्होंने अचानक युद्ध के धूल में अपने पति को जमीन पर लेटा देखा। जिस प्रकार जंगल में जंतु किसी से चिपक जाते हैं,उसी प्रकार सभी स्त्रियाँ रावण के शरीर पर गिर गई। एक ने उन्हें बहुत सम्मान के साथ गले लगाया, दूसरी रोई। एक ने उनके चरणों को गले लगाया, दूसरी उनकी गर्दन से चिपक गईं । किसी के अश्रु रावण के मुख पर ऐसे गिरे जैसे कमल पर ओस । एक ने उनके शीष को अपनी गोद रख लिया।
वाल्मीकि रामायण में ,मंदोदरी के विलाप का वर्णन अन्य पत्नियों के विलाप के वर्णन के पश्चात किया किया गया है।
मंदोदरी विलाप :
“आप वैश्रवण के छोटे भाई के रूप में जाने जाते थे। आपका नाम सुनकर क्रोधी, ऋषि, पृथ्वी के देवता,गदाधर अपने चरण लेकर अलग-अलग दिशाओं में भाग जाते थी। समृद्धि और वीरता से भरपूर होकर,आपने तीनों लोकों पर आधिपत्य किया। “आप पर कोई भी विजय नहीं पा सकता। फिर भी, आप एक जंगल में इधर-उधर भटकने वाले व्यक्ति से पराजित हो गए। मैं नहीं मान सकती की श्री राम ने यह कृत्य किया होगा।
त्रिलोकी रावण अपनी इन्द्रियों से क्यों पराजित हो गए।
“आपने तो अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त किया था ,तभी तो आप त्रिलोकी बने।कैसे इंद्रियों ने अब आपको हरा दिया ? कुल ,सौंदर्य या सौम्यता के विषय में मैथिली (सीता) का मुझसे कोई मुकाबला नहीं है। लेकिन आपने इन्द्रियों की उलझन में यह नहीं समझा कि वह मुझसे श्रेष्ठ थी या मेरे समकक्ष। “सभी प्राणियों की मृत्यु का कोई न कोई कर्रण बनता है । आपके लिए,आपकी मृत्यु का कारण मैथिली है।मैथिली तो अपने राम के साथ सुख भोगेगी और दुखों से मुक्त हो जाएगी। पर मै दुर्भाग्यशाली हूँ और इस कारण मैं दुःख के इस भयानक सागर में डूबी जा रही हूं।
मंदोदरी रावण के साथ अपने जीवन का स्मरण करती हैं ।
“मैंने आपके साथ सुंदर विमानों में, कैलासा,मंदारा,मेरू और चैत्रराठ के वैभव और सुन्दरता का दर्शन किया । बहुमूल्य आभूषणों और वस्त्रों को धारण कर,मैंने आपके संग कई क्षेत्रों का भ्रमण किया है। आपकी मृत्यु के पश्चात,मैं उन सभी आनंद की वस्तुओं से वंचित हो रही हूँ।
क्या रावण वायु मार्ग से सीता जी को ले गए थे ?
“आप अपनी शक्ति और पुरुषार्थ के लिए त्रिलोक में प्रसिद्ध थे और मुझे आप पर शोक नहीं करना चाहिए। लेकिन मेरी स्त्री प्रकृति के कारण, मेरा मन व्यथित हो रहा है। आपने अपने अच्छे कर्मों और बुरे कर्मों के अनुसार गति प्राप्त की है। चूंकि आप मुझसे अलग हो रहे हैं,इसलिए मैं अपने बारे में सोच के दुखी हूं। लज्जा से मेरा ह्रदय एक हज़ार टुकड़ों में बिकार जाना चाहिए की मै एक वीर और पराक्रमी पुरुष की मृत्यु का शोक कर रही हूँ।
वाल्मीकि रामायण में कई ऐसे प्रसंग हैं जो तुलसी रामायण में वर्णित नहीं हैं।चुकी वाल्मीकि रामायण समकालीन है इसलिए इसे विद्वानों द्वारा अधिक प्रमाणिक माना जाता है।
—-SingrauliFy