क्या है यूनिवर्स 25 प्रयोग ?जनसँख्या वृद्धि,और सामाजिक पतन पर इसका अध्यन?
आज से सिर्फ 35 वर्ष पहले मैं अपने बड़ों को कहते हुए सुनता था कि भारत की जनसँख्या 80 करोड़ पहुँच गई है। आज मैं 48 वर्ष का हूँ और अपने हर भाषण में मोदी जी का कहना “ मेरे 133 करोड़ देश वासियों”, मेरे अंदर एक सिहरन पैदा करता है।जबकि जनसँख्या वृद्धि से कोई बहुत अधिक सामाजिक अंतर नहीं पड़ा है, परन्तु इस बात को भी नहीं झुठलाया जा सकती कि जनसँख्या जितनी मर्जी बढ़ जाये,परन्तु पृथ्वी का भूभाग नहीं बढ़ने वाला।अपितु वैज्ञानिकों की माने तो, उल्टा घट ही रहा है।इसी बीच मुझे Universe 25 नामक एक प्रयोग का स्मरण हुआ।क्या है यूनिवर्स 25 प्रयोग ?
क्या है यूनिवर्स 25 प्रयोग ? – चूहों पर एक प्रयोग!
1968 और 1970 के बीच, अमेरिकी एथोलॉजिस्ट जॉन बी कैलहौन (1917-1995), ने नौ वर्ग फुट के बाड़े के भीतर बंदी चूहों का व्यवहारिक अध्ययन किया। यूनिवर्स 25 के रूप में जाने जाने वाले बाड़े के भीतर,कई जोड़े चूहों ने एक आबादी को जन्म दिया, जो अंततः 2200 तक पहुंच गया। आखिरकार, उन चूहों ने अपना एक भीतरी और बाहरी समाज का निर्माण कर लिया ,जिसके फलस्वरूप आश्चर्यजनक रूप से जल्द ही उन चूहों के बीच पूरी तरह से संभोग बंद हो गया।
https://www.ppcc.edu/parley/articles/lab-rats-escape-from-universe-25-and-chinas-one-child-policy
इस प्रयोग द्वारा समाजशास्त्रियों की एक गंभीर परिकल्पना की पुष्टि हुई। नॉर्वे के एक समाजशास्त्री ने अपने एक सिद्धांत में सुझाव दिया था कि समाज में अधिक प्रयोग सामाजिक कार्यों में एक टूटन पैदा करता है। जो की अंततः पूरी प्रजाति को विलुप्त कर सकता है।
नॉर्वे के कैलहोन के प्रसिद्ध प्रयोग के परिणाम ?
कैलहोन ने 1947 में चूहों पर अपना प्रयोगात्मक अनुसंधान शुरू किया,जिसमे उन्होंने चूहों के एक समूह का अध्ययन किया। उन चूहों को असीमित भोजन और पानी की आपूर्ति करते हुए, उन्होंने 28 महीने के प्रयोग के दौरान अनुमान लगाया कि चूहों की आबादी 5000 तक बढ़ जाएगी। हालाँकि,चूहों की जनसंख्या 200 में ही सिमट गई और वे चूहे एक एक दर्जन के समूहों में विभाजित हो कर ही रह गए।
प्रयोग में क्या श्रृंखला देखने को मिली ?
*चूहे बड़ी मात्रा में आपस में मिलते,संभोग और प्रजनन करते ।
*बाद में एक संतुलन बनने लगता है ।
*उसके बाद,चूहे या तो शत्रुतापूर्ण और हिंसक हो जाते हैं,या निष्क्रिय और असामाजिक व्यवहार विकसित कर लेते हैं।
*कुछ चूहे समलैंगिक भी हो गए। *अंततः जनसँख्या विलुप्ति की और हो जाती है।
मनुष्य इससे क्या सीख सकते हैं?
इस प्रयोग में पाया गया कि पर्याप्त संसाधनों के साथ भी ,चूहों के आदर्श समाज का निर्माण विफल रहा। इस बात से ये विचार आता है कि कैसे एक साम्राज्य/समाज शिखर पर (मानव गतिविधि के हर क्षेत्र में) पहुँचता है, और कभी भी एक आदर्श स्तिथि तक नहीं पहुंचता है।भले वो समाज अथवा साम्राज्य कितना भी बड़ा,संपन्न,शिक्षित क्यों न हो।
इसी तरह के प्रयोग कई लोग ने जनसँख्या विस्फ़ोट के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए किये हैं ताकि यह जाना जा सके कि मनुष्यों की जनसँख्या वृद्धि को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है। प्रयोगों ने ये दर्शाया है कि असीमित भोजन और सीमित क्षेत्र बनाम असीमित क्षेत्र और सीमित भोजन का समाज पर क्या प्रभाव पड सकता है।प्रत्येक प्रयोग का अंत असामान्य व्यवहार, सामाजिक विकार,लड़ाई,एक दूसरे को मारना और अंत में विलुप्त होने के साथ ही हुआ है।
यूरोप का उदाहरण सटीक बैठता है।
यूरोप अपने समृद्द्धि के शिखर पर है पर वहां की जनसँख्या अपने परिवार को बढाने और बच्चों को पैदा करने की दिशा में निराशावान है।अभी तक सिर्फ भारतीय उप महाद्वीप में ही हजारों वर्षों से ऐसी स्तिथि नहीं आई है। परन्तु अब राजनीतिक कारणों से समाज के कुछ वार्ग सिर्फ अपना प्रभुत्व स्थापित करने हेतु जनसँख्या वृद्धि को ही अपना लक्ष्य बना रहे हैं, जो कि नैसर्गिक न होके राजनीति से प्रेरित है।इसका अंत अंतत: समाज व राष्ट्र के विनाश के साथ ही होना सुनिश्चित है।
हम जानते हैं कि सभी जीव,भोजन की कमी से निपटने और जीवित रहने के लिए अपने आप को ढाल लेते हैं।लेकिन क्षेत्र और जगह की कमी की स्थिति बहुत अलग है।यह मनुष्यों सहित किसी भी जीव के लिए विनाशकारी हो सकता है।जनसँख्या रोकने में कोई भी कानून सफल नहीं हो सकता।अगर हो भी गया तो उसके दूरगामी परिणाम और भी घातक होंगे।चीन इसका ज्वलंत उदाहरण है।सिर्फ समृधि और आराम दायक जीवन ही इस पर रोक लगा सकते हैं।युरोप जैसे पश्चिमी क्षेत्र इसके उदाहरण हैं।हैं।उल्लेखनीय है कि भारत और सऊदी अरब के Fertility रेट में अधिक फर्क नहीं है।इसलिए जो आप सोच रहे हैं, वो तर्क भी बहुत ठहरता नहीं है।
एक सकारात्मक तथ्य ये है कि यदि भोजन,आश्रय आदि की हमारी मूलभूत आवश्यकताएं पूर्ण हो जाती हैं और हम आराम से रह रहे हों ,फिर चूहों के विपरीत हम जीवन के अर्थ के बारे में सवाल करना शुरू कर सकते हैं और हम आनंद का अनुभव करने के रास्ते पर जाना शुरू कर सकते हैं। आध्यात्मिकता की ओर झुकाव हो सकता है। जैसा कि, स्वामी रामकृष्ण ने कहा भी है।
— पी० कौशल