श्री अर्जुन सिंह,पूर्व केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री का लघु जीवन परिचय।  

इतिहास विडम्बनाओं से भरा है। 1930 में जन्मे वयोवृद्ध कांग्रेस के राजनेता, अर्जुन सिंह, कांग्रेस पार्टी के प्रति हमेशा निष्ठावान रहे, जिनकी,कांग्रेस कार्यसमिति से निकाले जाने के कुछ ही घंटों बाद 4 मार्च 2011 को मृत्यु हो गई थी।मप्र के एक छोटे से सामंती क्षेत्र चुरहट के रहने वाले अर्जुन सिंह 1960 में समाजवादी राजनीति में संक्षिप्त प्रयास करने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे।गाँधी-नेहरु परिवार के प्रति उनकी निष्ठा हमेशा चर्चा में रही है। यहां तक ​​कि जब उन्होंने पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री काल में एन० डी० तिवारी कांग्रेस में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी थी, तब भी उन्होंने गांधी परिवार के साथ अपने मधुर संबंध बनाए रखे थे।

श्री अर्जुन सिंह का जनता पर प्रभाव

पुराने जमाने की समाजवादी राजनीति और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में उनकी आस्था अटूट थी। मप्र के मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने 80 के दशक के मध्य में लाखों झुग्गी-झोपड़ियों के लोगों को उनके द्वारा अतिक्रमण की गई भूमि का मालिकाना दिलवाया था। उच्च जाति,सामंती पृष्ठभूमि के बावजूद अल्पसंख्यकों और पिछड़ी जातियों में उनका ख़ासा प्रभाव रहा था।उन्होंने अपने अंतिम वर्षों में कांग्रेस में उपेक्षित होने और कड़वाहट के बावजूद नेहरू-गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा में निरंतरता रखी। नेहरू-गांधी परिवार का भी कुंवर अर्जुन सिंह के प्रति स्नेह लगभग हमेशा ही बना रहा।

श्री अर्जुन सिंह ने अपने आप को राजनीति में स्थापित किया

संजय गांधी से निकटता के कारण,विधायक दल में अल्पमत में होने के बावजूद अर्जुन सिंह 1980 में पहली बार मप्र के  मुख्यमंत्री बने। उस समय श्यामा चरण शुक्ल और विद्या चरण शुल्क बंधुओं के बाद मप्र राजनीति में श्री अर्जुन सिंह को दूसरे नंबर का नेता माना जाता था।परन्तु जल्द ही उम्होने अपनी स्थिति पहले से अधिक दृढ कर ली थी।

कुंवर अर्जुन सिंह जब पंजाब के राज्यपाल बने

जब सिख आतंकवाद चरम पर था तब पंजाब के गवर्नर रहते हुए उन्होंने पंजाब को नियंत्रित रखने में अहम् भूमिका निभाई ।

Rajeev Longowal Deal
Rajeev Gandhi with H.C.S Longowal

1985 में हुए राजीव-लोंगोवाल समझौते का भी उन्हें वास्तुकार माना जाता है।उन्होंने दो दशकों में केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई विभागों को संभाला।

श्री अर्जुनं सिंह,एक प्रसाशक के रूप में

उनके साथ काम करने वाले नौकरशाह उन्हें एक सक्षम प्रशासक के रूप में याद करते हैं। उन्होंने डंके के चोट पर शासन किया। उनके एक प्रशंशक ने एक बार कहा था,उनके आदेशों को लागू किया जाना अनिवार्य होता था भले ही उनका आदेश सिगरेट के पैकेट के पीछे लिख कर जारी किया गया हो”। दूसरी तरह उनके विरोधियों का कहना था कि उनके फैसले हमेशा राजनीतिक होते थे,जिसने संस्थानों को हमेशा कमजोर किया।

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श्री अर्जुन सिंह अपनी आत्मकथा को पूरा न कर सके।

हमेश लोग उनकी कभी न पूरी हो सकने वाली आत्मकथा की प्रतीक्षा करते रहे,इस उम्मीद में कि वे अपनी आत्मकथा में यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन (भोपाल गैस कांड के मुख्य अभियुक्त) की रहस्यमयी गिरफ्तारी और रहस्यमयी रिहाई के बारे में सभी को बताएँगे। भोपाल कांड के विषय पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने श्री सिंह को पत्र लिखकर भोपाल से श्री एंडरसन की “उड़ान” के लिए स्पष्टीकरण भी मांगा था। इस प्रकरण में भाजपा ने भी राजनीति करने में कोई भी कमी नहीं की।कुछ लोगों का यह भी कहना रहा है कि वॉरेन एंडरसन को देश से बाहर जाने देने में श्री अर्जुन सिंह की प्रमुख भूमिका रही है। पर ये सब सिर्फ अटकलें ही हैं,सिद्ध कभी कुछ नहीं हो सका।

श्री अर्जुन सिंह का यश और अपयश ।

केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने क्षेत्र चुरहट में नवोदय विद्यालय की स्थापना करवाई।उनका कहना था की अल्पसंख्यको और पिछड़ों का कल्याण सिर्फ शिक्षा के द्वारा ही हो सकता है। श्री अर्जुन सिंह का राजीतिक जीवन उतार चढाव से भरा रहा।चुरहट लाटरी कांड में यश को भी धक्का लगा और उनकी मंत्री की कुर्सी चली गई।आज उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे श्री अजय सिंह संभाल रहे हैं।

90 के दशक में मेरी ड्यूटी साडा क्षेत्र में मतदान करवाने के लिए लगी, तब मैंने निजी तौर से महसूस किया की श्री अर्जुन सिंह का सम्मान और यश,चुरहट और आस पास के क्षत्र में बहुत ज्यादा है।निसंदेह ही उन्होंने अपने क्षत्र के लोगों का दिल जीता है। ज्यादातर जानकारी स्वयं के स्मरण से दी गई है और कुछ जानकारी विभिन्न लिखों से प्राप्त की गई है।

—- पी० कौशल    

 

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