सिंगरौली :- प्रदूषण बनाम प्रकृति – Singrauli Pradushan Banaam Prakriti

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सिंगरौली :- प्रदूषण बनाम प्रकृति – Singrauli Pradushan Banaam Prakriti

सिंगरौली जिसका नाम ऋषि श्रृंगी के नाम पर पडा, जिसे आदि काल से प्रकृति ने अपने सौन्दर्य से विभूषित किया था आज प्रदूषण का पर्याय बन गया है | आज सिंगरौली प्रदूषण के पैमाने में विश्व के सबसे उपरी पायदान पर है |

सिंगरौली में प्रकृति

आइये पहले सिंगरौली में प्रकृति के सौंदर्य की चर्चा करते है | जैसा की मैंने पहले ही कहा कि सिंगरौली का नाम ऋषि श्रृंगी के नाम पर पडा और यहाँ पर आदिकाल से सुंदर वनों और वन्यजीवों की अधिकता थी | पुराने लेखों और बुजुर्गों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र में भगवान् राम के भी पदार्पण के उल्लेख मिलते है जिसके सबूत माडा की गुफाओं में है और हाल ही में पुरातात्विक विभाग की खुदाई से कुछ ऐसे  अवशेष भी मिले है जो कलचुरी वंश के शासनकाल को भी प्रमाणित करते हैं | यही नहीं, यहाँ पर आदि शंकराचार्य के भी आगमन की भी पुष्टि हो चुकी है | मुझे विश्वास है कि चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने जब बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पुरे भारतवर्ष का भ्रमण किया था तो उनका रास्ता सिंगरौली के जंगलों से भी हो कर गुजरा था | यह प्रकृति के बेहतरीन भूखंडों में से एक है जिसे आदिकाल से संभृत लोगो ने मान्यता दी |

सिंगरौली की वनसंपदा

सिंगरौली की वनसंपदा कितनी विशाल थी इसका अनुमान इसी एक घटना से लगाया जा सकता है कि यहाँ हर साल असम से सालाना प्रवास के लिए हाथियों का झूंड आता है | यह सालाना प्रवास असम से शुरू होकर बंगाल, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ होते हुए सिंगरौली जिले में उत्तर पूर्वी दिशा से प्रवेश करता है और सीधी जिले के पोंडी बस्तुआ के जंगलों तक जाता है | ऐसा मन जाता ही कि हाथियों का यह सालाना प्रवास कई सौ वर्षो से निरंतर जारी है |लोगो के द्वारा यह भी सुना गया है की यह क्षेत्र १९६३ में विलुप्त हो गए चीता का भी शरण स्थली था | सिंगरौली से सटे उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे पहाड़ो के ऊपर एक और वन्य प्रजाति पाई जाती थी जिसको कैरकल (स्याह गोश ) कहा जाता है जो की पिछले कुछ वर्षो से नहीं देखा गया है | इन्ही पठारों में कृष्ण मृग भी पाए जाते हैं जिनकी भी संख्या निरंतर गिरती जा रही है |

उत्खनन और बिजली उत्पादन

इन प्राकृतिक सम्पदाओं का निरंतर विलुप्त होना या कम होना सिर्फ और सिर्फ हमारे विकास के लिए किये गए कामों को जाता है जिसकी छतिपूर्ति कभी नहीं हो सकती | जिस समय इस इलाके में रिहंद बाँध बंधा उसी समय से  प्राकृतिक सम्पदाओं का विनाश शुरू हो गया | कोयला के लिए उत्खनन और बिजली उत्पादन के लिए लगाईं गयीं परियोजनाए इस आग में घी डालने का काम निरंतर करती रहीं | इस विकास की रूपरेखा बढाते बढाते आज यह हाल हो गया है की हम सब उस क्षेत्र में निवास कर रहे हैं जहा कि प्रदूषण विश्व में सबसे ज्यादा है

NCL और अन्य निजी क्षेत्र

वन विभाग के निरंतर प्रयासों के वावजूद इस क्षेत्र में वनों को पुनः स्थापित करना उतना की बड़ा काम है जितना की की सूरज की रौशनी को पृथ्वी पर आने से रोकना | हालांकि इस क्षेत्र में उत्खनन कर रही NCL और अन्य निजी क्षेत्र की कंपनियों ने इस बाबत बहुत सारा प्रयास और धन भी खर्च किया पर प्रकृति को पुनः स्थापित करने में सफलता हासिल नही की |  यहाँ तक की वन विभाग के प्रयाश भी लगभग शून्य ही रहे

 

इन सब के बीच यदि हमे इस क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदाओं का विनाश रोकना है और वनों को पुनः स्थापित करना है तो इस क्षेत्र में कार्यरत सभी कोम्पैयों को एक जुट हो कर कुछ ऐसे एन जी ओ को काम में लगाना होगा जो उत्खनन के पश्चात भूमि तो प्राकृतिक सौन्दर्यता देने के लिए काम कर सकें | यहाँ पर जनता से भी अपेक्षा होगी की ऐसे पुनः लगाये गए वृक्षों को कटाई से बचाए | यदि सामूहिक प्रयास नहीं किये गए तो एक दिन ऐसा आएगा की इस क्षेत्र में प्रकृति ही हमारे विनाश की लीला शुरू कर देगी |

अभी तो सिर्फ प्रदूषण में ही यह क्षेत्र विश्व में सबसे आगे है, यदि जल्द उचित कदम नहीं उठाये गए तो प्रकृति के पास हमारे विनाश के लिए बहुत से तरीके हैं जिनमे से एक है पैराबैगनी किरणों की मार जिसे पेंड पौधे सोखते हैं और इंसानों के लिए जो अत्यंत हानिकारक होती है |

इसलिए निवेदन है की प्रदूषण बनाम प्रकृति में हम प्रकृति को चुनें और आने वाली पीढियों को एक बेहतर हरियाली से भरा पूरा वातावरण प्रदान करने की कोशिश में आज से ही जुट जाएँ |    – Abhudhay Singh (Danny – Singrauli )

 

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