लॉक डाउन के पल
जिन्हें हम भुलाने लगे थे जिंदगी की जद्दोजहद में,
वो फिर से इस इस तन्हाई में याद आने लगे हैं।
जो जगाते थे रातों को ख्वाबों में आकर,
वो फिर से मुस्कुरा कर रातों को जगाने लगे हैं।
इस तन्हाई ने फिर से उसी मुकाम पे ला कर छोड़ा है,
जहाँ से हम सपनो की महफ़िल सजाने लगे हैं,
कैसे भुला पाए थे उनको अपनी यादों से,
वो तराने फिर से तन्हाई, हमको सुनाने लगे हैं।
सिर्फ इतना बता दे मुझको ऐ खुदा,
क्या उनको भी ये तन्हाई रातों को जगाने लगे हैं।
— शैलेन्द्र शर्मा —-
पल पल क्षण क्षण, गहराता ये सन्नाटा,
पल पल क्षण क्षण, गहराता ये सन्नाटा,
अपनों से दूर, अपनो की याद दिलाता ये सन्नाटा।
मत बिखरना इन सन्नाटों की सूनी गलियों में,
घर पे रहने की ताकीद कराता ये सन्नाटा।
कभी बेचैनी का आलम भी लाएगा ये सन्नाटा,
पर खुशियों के सौगात भी दिलाएगा ये सन्नाटा।
वक़्त अभी है सन्नाटों का तो सब्र कर,
इस दुश्मन से भी जीत दिलाएगा ये सन्नाटा।
पल पल क्षण क्षण गहराता ये सन्नाटा।
हमराही का साथ छूटा, हमजोली का साया छूटा,
रिश्तों की भीड़ भाड़ में, संबंधों का सरमाया छूटा।
और ना जाने क्या गुल खिलायेगा ये सन्नाटा।
इस दुश्मन से भी जीत दिलाएगा ये सन्नाटा।
पल पल क्षण क्षण गहराता ये सन्नाटा।
— शैलेन्द्र शर्मा —-