Golden Opportunity during Lock Down in Singrauli
लॉक डाउन के कारण अपने घर में बैठकर मैं अपने मोबाइल पर कोरोना से हुई मृत्यु की ख़बरें देखी ही रहा था कि अचानक मेरी बेटी पीछे से आई और कहा पापा मेरे साथ “लूडो” खेलो ना! मोबाइल हाथ में लिए मुझे सारी दुनिया की चिंता होने की गलतफहमी थी ,इसलिए मैंने अपनी बेटी को झिड़क कर कहा “समाचार देख रहा हूँ अभी नहीं खेल सकता” । पर वह बेचारी क्या जाने के पापा घर में बैठे-बैठे चिढचिढ़ा महसूस कर रहे हैं,इसलिए नहीं खेलना चाहते।दूरदर्शन पर रामायण देख कर जब मैं सोने को गया तब मुझे अपनी बिटिया की लूडो वाली बात याद आई और मैंने अपने व्यवहार के लिए खुद को बहुत कोसा।उसी वक्त मुझे समाजशास्त्र की अंतःक्रियावाद का सिद्धांत याद आया जिसमें एक बहुत ही प्रासंगिक कहानी बताई जाती है।
ये छोटी सी कहानी कुछ इस प्रकार है। एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के पिता के पास उसका हाथ मांगने जाता है।पर एक साधारण पिता की तरह उन्होंने प्रेमी से उसकी कमाई का स्रोत पूछा जिसका जवाब वह प्रेमी बेरोजगार होने के कारण न दे सका।शर्मिंदा होकर लौटते हुए उस प्रेमी ने ठान लिया कि वह किसी बड़े शहर जाकर मेहनत से धन कमाकर फिर अपनी प्रेमिका का हाथ मांगने जायेगा। बोझिल ह्रदय से बिछड़ते हुए उस प्रेमी ने प्रेमिका को वचन दिया कि वह रोज उसे एक पत्र लिखा करेगा।एक उद्योगपति के यहां नौकरी पाकर उसने अपने पत्र लिखने का सिलसिला शुरू किया और वह रोज एक पत्र लिखा करता था । गांव का डाकिया रोज उस पत्र को उसकी प्रेमिका के पास पहुंचा देता।यह सिलसिला एक साल तक चलने के बाद जब वह प्रेमी अपने गांव लौटा तो उसे अपने गांव का डाकिया मिला जो कि हाथ में एक आमंत्रण पत्र लिए उसी की ओर आ रहा था। पूछने से पहले ही डाकिए ने आमंत्रण पत्र देते हुए कहा कि आपको मेरी शादी में अवश्य आना है। जब प्रेमी ने आमंत्रण पत्र खोला तो देख कर स्तब्ध रह गया कि उस डाकिए से उसकी प्रेमिका का ही विवाह हो रहा है। क्योंकि उसने हरबर्ट जॉर्ज ब्लूमर का समाजशास्त्र का अंतःक्रियावाद का सिद्धांत नहीं पढ़ा था इसलिए वो दुखी होकर रोने लगा। सिद्धांत कहता है कि जिस संबंध में सजीवता न हो वह धीरे धीरे जड हो जाता है।वह डाकिया रोज वहां जाता था कभी चाय पी ली,कभी दुख सुख जान लिया,कभी हंसी ठठ्ठा कर लिया कभी उसके पिताजी के साथ संवाद कर लिया इस कारण उसकी नज़दीकियां स्वत: ही उसकी प्रेमिका से बढ़ गई और जड हो गए रिश्ते ने दम तोड़ दिया।”
इस लॉक डाउन के समय शायद मै भी ऐसी ही कोई गलती कर रहा हूँ।परेशानी ये है कि न किसी मित्र के घर जा पा रहा हूँ और न ही सिंगरौली बस स्टैंड बाज़ार जाकर पान खाने की आज़ादी है और न ही कोई मेरे पास मेरे घर ही आने को तैयार है। 24 घंटे अपने परिवार के साथ का आनंद लेने की बजाय मै समाज से मिलने को आतुर हो रहा हूँ जिसके बारे में मुझे उतना ही पता है जितना वो बताना चाहता है।
भारत रिश्ते और संबंधों का देश रहा है।
हाल ही में हुए एक सर्वे में जब विश्वभर की 70000 महिलाओं से जब पुछा गया कि क्या आप किसी भारतीय से विवाह करने में इच्छुक हैं, तो जवाब में 65% महिलाओं ने अपना जवाब “हां” दिया।भारत में रिश्तों में प्रति सम्मान और आदर को उन्होंने कारण बताया।अब जब भारत भी अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ते हुए पाश्चात्य संस्कृती को अपनाने में लग कर रिश्ते नातों को समय देने से भाग रहा है, तब ये कोरोना का तांडव और मोदी जी का लॉक डाउन एक अवसर बन कर आया है, जब हम कुछ दिन ठहर के सोच सकें कि आखिर इस भागम भाग में कहीं हम अपने बहुमूल्य संबंधों को पीछे तो नहीं छोड़ते जा रहे?
लोग अब मोबाइल कंप्यूटर कि आभासी दुनिया को ही अपना जीवन समझ रहे हैं।मेरे इतने FB friends, मेरे इतने followers , मेरे इतने subscriptions वालों को ये भी समझना चाहिए की बुरे वक्त में अपना परिवार ही खड़ा रहता है,FB friends तो बस औपचारिकता निभा के चले जायेंगे।
यही समय है कि हम सजग हों और बेहोशी की दुनिया से बाहर निकल के खुद से मिलने का प्रयास करें।कोरोना के रूप में इश्वर की इस लीला को सकारात्मक सोच में बदलें और परमात्मा के दिए इस अनमोल जीवन को पूरी सजगता से जियें ।अब यही कामना है कि जल्दी से सुबह हो और मै अपनी प्यारी बेटी के साथ “लूडो” खेल कर हार जाऊं और अपने भीतर अपने आडम्बरी अहंकार से भी से हार जाऊं।
—SingrauliFy